एक फूल खिला यूँ ही, एक बच्चा मुस्कराया यूँ ही एक मनुष्य घर से निकला, गुनगुनाया यूँ ही. यूँ ही नहीं बड़बड़ाता है नरक का बादशाह - इस दुनिया के नष्ट होने में देर है कितनी?
नदी के उस किनारे पर जहाँ सूरज सुनहरे चादर में मुँह छिपाकर सो गया और खामोश बहती हवा में तुम्हारी हँसी खिलखिलाकर फैल गयी वहीं हरसिंगार के पेड़ के नीचे एक नाव तुम्हारा इंतज़ार करती है...!!