Saturday 14 November 2015

जब घूम रही थी धरती - राकेश रोहित

बच्चा गोल- गोल घूम रहा था
और उसके साथ चल रही थी धरती
फिर वह स्थिर हुआ
और घूमने लगी धरती!

वह हँसा
और जोर से तालियां बजाने लगा
दूरदर्शन देखने में तल्लीन
एक परिवार ने झिड़का उसे-
चुप रहो!

वे बदलते दृश्यों के निस्पंद गवाह थे
जब घूम रही थी धरती
वे पृथ्वी पर नहीं थे!

Saturday 7 November 2015

मैंने उससे बात की - राकेश रोहित

मेरे पास कहने को कुछ नहीं था
और सुनने को कोई नहीं
मैंने देखा मेरी आँख में
एक आँसू अटका पड़ा था
मैंने उससे बात की
वह धीरे-धीरे बहने लगा।

Tuesday 20 October 2015

सौ आँखें और एक सपना - राकेश रोहित

तुम्हारी सौ आँखों में
मेरा एक सपना नहीं समाता
मैं जिसे देखता हूँ
तो बची रह जाती है
दुनिया में तुम्हारी जगह!

Monday 19 October 2015

मैं उससे मिला एक दिन - राकेश रोहित

मैं उससे मिला एक दिन
जिसे किसी ने हँसते हुए नहीं देखा
एक विश्वप्रसिद्ध पेंटिंग में उसकी
मुस्कराहटों की छवियां हैं
मैंने एक दिन उसकी बंद आँखों को चूमा था
वह अंधेरे में मोती बरसने की रात थी।

Thursday 15 October 2015

एक अव्यक्त मन - राकेश रोहित

मेरे पास रथ का कोई टूटा पहिया नहीं
बस कुछ अधूरे वाक्य हैं!
जब तेज संगीत के साथ बजती है
विजेताओं के आगमन की धुन
मैं खड़ा हूँ शब्दों की भीड़ में
एक अव्यक्त मन लिए
मुझे अभिव्यक्ति का एक अवसर दो
मैं तुम्हारे अंदर गूंजता स्वर हो जाना चाहता हूँ।

Sunday 11 October 2015

वह - राकेश रोहित

नदी के जिस ओर खड़ी थी स्त्री
उस ओर बहुत फिसलन थी
और काई
कि खड़ा होना मुश्किल था
फिर भी तुम्हें देखना चाहती थी वह
इसलिए वह खड़ी रही।

Saturday 3 October 2015

चिड़िया, बारिश, सपना और पेड़ - राकेश रोहित

धूप में बैठी चिड़ियों को
बारिश के सपने आते हैं
एक दिन सपने में बारिश होती है
और लौटती है चिड़िया पेड़ पर!

Sunday 20 September 2015

तुम्हारी आवाजों को जगह - राकेश रोहित

मैं धूप में इसलिए निकल आया हूँ
कि थोड़ी छाया हो धरती पर
मैं खामोश रहता हूँ इस शोर में
कि तुम्हारी आवाजों को जगह मिले!

Tuesday 15 September 2015

उस राह पर दीपक - राकेश रोहित

हर रात एक जलता हुआ दीपक
उस राह पर रख आता हूँ
जिस राह पर तुमने कहा था
फिर कभी नहीं मिलना!

Friday 4 September 2015

संशय क्यों हर प्रेम पर छाया है - राकेश रोहित

संशय क्यों हर प्रेम पर छाया है?

क्योंकि प्रेम पृथ्वी है
और संशय आकाश!
आकाश की छाया डोलती है
पृथ्वी की देह पर
और पृथ्वी के धुले चेहरे पर
आकाश के चुंबनों के निशान हैं!

क्योंकि प्रेम मैं हूँ
और संशय तुम!

Thursday 20 August 2015

दुनिया ऐसे बदलती है - राकेश रोहित

जहाँ छूट जाती है प्रार्थना की लय
वहाँ से उठता है उसका स्वर
कोरस से अलग गूंजती है उसकी आवाज
वह खुले दरवाजे पर खड़ी है
और खिड़कियों के बाहर बदल रहा है दृश्य
वह धीरे से शामिल हो गयी है इस दृश्य में
नारंगी फूल जो हँस रहा है उन्मुक्त हँसी
वह विनय की मुद्रा में नहीं है।

Friday 31 July 2015

तुम्हारे नाम का शब्द - राकेश रोहित

जबकि तुम मुझे भूल गयी हो
डायरी के किसी पन्ने में
समय अब भी ठहरा हुआ है।

कल चाँद के पास
अकेला चमक रहा था तुम्हारे नाम का शब्द
तुम पढ़ना
मैं उसे कविता में उतार लाया हूँ।

Friday 17 July 2015

कविता और प्यार - राकेश रोहित

हर नया शब्द 
नया पर्दा है सच को छुपाने के लिए।

सात पर्दों में छुपी भाषा को
मैं बाहर लाता हूँ कविता में
मैं कविता करता हूँ, जब मैं कहता हूँ -
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।

Thursday 16 July 2015

तुम्हारी याद जैसे कलरव है - राकेश रोहित

एक चिड़िया पेड़ पर बैठी है
एक याद मेरे मन में है
पता नहीं आवाज किसकी आती है?
पता नहीं यह कलरव किसका है?

Wednesday 15 July 2015

घास की नोक पर बूंद- राकेश रोहित

सुंदर है
घास की नोक पर ठहरी
पानी की एक बूंद!

पर, मेरी कविता को इंतज़ार
उस बूंद के
घास की जड़ों तक पहुँचने का है!!

Wednesday 1 July 2015

पहले पन्ने पर तुम्हारा नाम - राकेश रोहित

पढ़ने को तो मैं पढ़ता हूँ
बादलों का लिखा
लेकिन नहीं पढ़ पाया वो किताब
जिसके पहले पन्ने पर तुम्हारा नाम लिखा है
और बाकी सफे खाली हैं।

Saturday 13 June 2015

फूल हँस रहे हैं - राकेश रोहित

उसने पूछा- "क्या तुम हँसते हुए फूलों को देख रहे हो?
मैंने कहा- "मैं तो तुम्हें देख रहा हूँ
और फूल हँस रहे हैं!"

Sunday 17 May 2015

इस दुनिया में छल - राकेश रोहित

इस दुनिया में सिर्फ छल चमकता है
और तुम्हारी आँखें इसलिए चमकती हैं
क्योंकि मुझको छलती हैं
वो निश्छल आँखें!

Tuesday 12 May 2015

मेरा मन वहीं - राकेश रोहित

मैं देखता हूँ फुनगी से गिरता फूल
मेरे कदम आगे बढ़ जाते हैं
और मन देखता रहता है
जहाँ वह फूल झर रहा है।

सुनो,
जब तुम उस राह से गुजरोगी
एक पल जरा देखना
मेरा मन वहीं- कहीं आसपास
ठहरा हुआ होगा!

Monday 11 May 2015

सितारे की रोशनी - राकेश रोहित

अंधेरे के सौ जंगल पार कर एक सितारे की रोशनी आपसे बतियाने आती है और आप यह सोच कर घर में बैठे हैं कि यह सितारा कल भी रहेगा!

Sunday 10 May 2015

मिलने आया चाँद - राकेश रोहित

दरवाजे बंद थे तो खिड़की के रास्ते चला आया चाँद 
मिलने का मजा तब है जब दीवानों की तरह तू मिल!

Saturday 4 April 2015

एक पल - राकेश रोहित

तुम्हें याद करते हुए अचानक
डायरी में किसी एक पल मैंने प्यार लिख दिया था।
वही एक पल मेरी जिंदगी में
हर रोज कम पड़ जाता है!

Thursday 26 March 2015

स्पर्श - राकेश रोहित

स्पर्श में ही बचा रहता है
सृष्टि का आदिम स्वाद
ऐसे छूता हूँ तुमको
जैसे छूती है हवा नदी को।

Monday 16 March 2015

ऐसे रहे कविता - राकेश रोहित

चाहता हूँ कविता ऐसे रहे मेरे मन में
जैसे तुम्हारे मन में रहता है प्रेम!

Sunday 1 March 2015

माटी में छुपी कविता - राकेश रोहित

आप कहाँ मेरे दिल का कहा मानते हैं,
माटी में छुपी कविता का रहस्य सिर्फ फूल जानते हैं!"