Monday 23 May 2016

मुस्कराहटें - राकेश रोहित

तुम न मेरी उदासी पढ़ सकती हो
न मेरा एकांत
इसलिए मुझे मुस्कराने के सौ जतन करने पड़ते हैं!

एक बात कही थी जो मैंने
वह शायद तुम भूल गयी हो
मेरे अंदर जो हताशा का समंदर है
उसके तट पर कोई टहलता नहीं है!

तुमसे मेरी सारी मुलाकातें
मुस्कराहटों के नाम हैं
यह बात और है कि
आइने ने मुझे हँसते हुए नहीं देखा!

1 comment:

  1. मेरे अंदर जो हताशा का समंदर है
    उसके तट पर कोई टहलता नहीं है!

    वाह्ह्ह्ह

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