बारिश में एक साथ भीगने की कल्पना थी मन में
इसलिए तुम्हें प्यार किया मैंने।
मैं धरती पर था
इसलिए प्यार करती रही धरती मुझे
...और कभी भीग नहीं पाया मैं
धरती के संग बारिशों में!
बारिश में एक साथ भीगने की कल्पना थी मन में
इसलिए तुम्हें प्यार किया मैंने।
मैं धरती पर था
इसलिए प्यार करती रही धरती मुझे
...और कभी भीग नहीं पाया मैं
धरती के संग बारिशों में!
शमा पर सौ पर्दे लगे हैं
और कविता के रास्ते में
आतिशबाजियां हैं।
प्रेम हमेशा पीछे रह जाता है
बस चमकता है
कविता का उदास चेहरा।
यह कोरा क्षण है
खाली सफों पर
तुम्हारा नाम लिखना है
और जुल्म यह
कि कोई पढ़ ले
इससे पहले उसे मिटाना है।
तुमने अपने नाम में
छुपा लिया है मेरे नाम का रंग
अब अगर बारिश में भीग जायें हम
तो यह दुनिया सतरंगी हो जायेगी।
नदियों ने सौ बार कहा है
वे चाहती हैं तुम्हें
मुझे एक बार कहने के लिए भी
नदी के एकांत में जाना पड़ता है।
यह जो नदी की तरह
तुम बहती रहती हो
इस मरु थल में
क्या तुमने किसी पुकार पर
कभी मुड़ कर नहीं देखा!
अंधेरी धरती से पीला रंग निकालकर
जहाँ उछाह से उमगते हों
सरसों के फूल
वहीं खड़े होकर
मैं चूमना चाहता हूँ
तुम्हारे होठों पर चमकते वसंत को!